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एचआरटीसी के विवादित रहने के बाद पहली बार हिमाचल प्रदेश कर्मचारी चयन आयोग को इस भर्ती का जिम्मा दिया गया था।
अब यह एजेंसी भी इस परीक्षा को करवाने में चूक गई। कंडक्टर भर्ती की प्रक्रिया फूल प्रूफ नहीं थी। इससे व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। शिमला में तो अव्यवस्था के यह हाल रहे कि शिमला में फोन पकड़ा गया तो परीक्षार्थी ही हाथ से फिसल गए। इस परीक्षा के लिए कर्मचारी चयन आयोग ने करीब 60 हजार एडमिट कार्ड जारी किए थे। ऐसे में हजारों उम्मीदवारों की इस परीक्षा को कंडक्ट करवाने के लिए सैकड़ों केंद्रों में केवल आयोग की ओर से 40 ही कर्मचारी थे। आयोग के फील्ड में इतने ही कर्मचारी सक्रिय रहते हैं। स्टाफ ही इतना है। परीक्षा आयोजित करवाने के लिए आयोग ने डीसी, एसपी और एसडीएम की भी मदद लेने को लिखा था। हर केंद्र में पर्याप्त स्टाफ की नियुक्ति
की जानी वांछित थी। इनमें परीक्षा अधीक्षकों, अन्य स्टाफ, सुरक्षाकर्मियों आदि स्टाफ जिला और उपमंडल प्रशासन को ही मुहैया किया जाना था। परीक्षा में मोबाइल फोन आदि न कोई ले जाए, यह भी उपायुक्तों और उपमंडलाधिकारियों की ओर से तैनात स्टाफ को ही देखना था। इसके बावजूद राज्य में चार जगहों पर गड़बड़ी हुई। शिमला, सोलन और कांगड़ा में जहां परीक्षार्थी मोबाइल फोन
परीक्षा हाल में लेकर गए, पेपर बाहर लीक कर दिया, वहीं सुंदरनगर में तो एक अभ्यर्थी अपने भाई की जगह परीक्षा देने बैठ गया। अब राज्य कर्मचारी चयन आयोग भी संबंधित जिम्मेवार अधिकारियों और कर्मचारियों के सिर पर इसका ठीकरा फोड़ रहा है कि गलती जिला प्रशासन और उपमंडल प्रशासन की उस व्यवस्था की है, जिसे परीक्षा के आयोजन में आयोग का सहयोग करना था। साथ ही आयोग ने एकाएक कार्रवाई की बात कर अपने कर्तव्य की पूर्ति कर ली है। पर प्रदेश में परीक्षा आयोजित करने के लिए निर्धारित दूसरी बड़ी एजेंसी की इस कार्यप्रणाली पर सवाल पीछे छूट गए हैं। सवाल यह भी है कि यह व्यवस्था अगर बार-बार एक अदद कंडक्टर की फूल प्रूफ भर्ती नहीं करवा पा रही है तो बाकी भर्तियों का क्या होगा।
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