ज्वालाजी(कांगड़ा)हिमाचल प्रदेश खबरों से खबर (माधव और केएस की रिपोर्ट)
जिला कांगड़ा के विश्वप्रसिद्ध शक्तिपीठ माँ ज्वालामुखी में गुप्त नवरात्रों का समापन आज पूर्ण आहुति के साथ हुआ। इन गुप्त नवरात्रों में श्रद्धालु करते हैं माँ की अखण्ड ज्योतियों के दर्शन। विद्वानों का कहना है कि ज्वालामुखी मंदिर एक शक्तिशाली शक्तिपीठ है। धरती पर तीन शक्तिपीठ हैं जो सबसे शक्तिशाली हैं। इनका धरती पर एक त्रिकोण बना हुआ है। एक – ज्वालामुखी देवी, दूसरी – कामाख्या देवी, तीसरी – बिन्द्यावासिनी देवी। ज्वालामुखी में माता सती की जिव्हा गिरी थी। यहाँ पर धरती से ही ज्योतियाँ निकलती हैं। बिना तेल और घी के ये ज्योतियाँ सदियों से जलती आ रही हैं। न बुझती है न कम या ज्यादा होती है। इस मंदिर में माँ भगवती का वास कहा जाता है। लेकिन वास्तव में ज्वालाजी मंदिर माँ काली को समर्पित है। यहाँ माता काली, माँ लक्ष्मी और माँ सरस्वती के तीनो रूप अखंड ज्योति के रूप में प्रज्वलित हैं। कहा ये भी जाता है कि अकबर ने भी इन ज्योतियों को बुझाने का हर प्रयास कर लिया था। लोहे के
तवे ज्योति पर डाल दिए, पानी की नहर भी ज्योति पर डाल दी, मगर ज्योति तवा फाड़ पानी पर जलने लगी। तब बादशाह अकबर ने सोने का छत्र माता के चरणों में चढ़ाया, लेकिन छत्र चडाते ही बादशाह अकबर को अहंकार को गया की उसने मुस्लिम होकर भी माता के मंदिर में सोने का छत्र चढ़ाया है। उसके एसा कहते ही सोने का छत्र काला पड़ गया, जो किसी भी धातु का न रहा। वही छत्र आज भी वेसे का वेसा ही मंदिर में पड़ा है।
मंदिर में है विशाल हवनकुंड – मंदिर में एक विशाल हवन कुण्ड है, जो सदियों से जागृत है। कहा जाता है कि इसमें माता का मुख भी है। माना जाता है कि इसी कुण्ड में पांच आहुतियाँ डाल कर आप इतना पुण्य अर्जित कर सकते है। जितना आप कोई बड़ा अनुष्ठान कर के हासिल करते हैं। इसी हवन कुण्ड के समक्ष भी गुप्त साधना होती है। कहते हैं इस हवन कुण्ड में डाली आहुति सीधे माँ के मुख में जाती है।
ये है माँ ज्वालामुखी मंदिर की दिव्य ज्योतियों का इतिहास – इस मंदिर पर एक दंतकथा भी है। पूर्व काल में मुनियों ने एकत्र हो कर यज्ञ रचाया जिसमें ब्रह्म विष्णु शिव अपने परिवार सहित शामिल हुए वही इस मौके पर देवता व् समस्त ऋषि मुनि वहां अपने विचार प्रकट कर रहे थे कि प्रजापतियों के स्वामी दक्ष वहां आ पहुंचे व् ब्रह्म जी को प्रणाम कर अपने आसन पर बैठ गए। सभी ऋषियों मुनियों ने दक्ष की पूजा की। लेकिन शिव अपने स्थान पर बेठे रहे व् उन्होंने प्रणाम तक नहीं किया। जिससे दक्ष अपना अपमान समझ कर क्रोधित हो गए व अपने दामाद शिव को भला बुरा कहा व् कहा की मैं इसे यश से बहिस्कृत करता हूँ। अब वो देवताओं का साथ यज्ञ में भाग नहीं ले सकेगा। यह सुन कर नन्दीश्वर गुस्सा हो गए व् उन्होंने दक्ष को शाप दे दिया। जिसे शिव ने वापिस ले लिया और नन्दीश्वर को शांत किया। भगवन शिव व् दक्ष का आपसी विरोध दिन-प्रतिदिन बढता गया व एक दिन दक्ष ने यज का आयोजन किया। जिसमें इर्ष्या के चलते शिव व उसके भक्तों को नहीं बुलाया गया। जिसमें ब्रह्म-विष्णु सहित सभी देवताओं ने भाग लिया, शिव को नहीं बुलाने के पीछे दक्ष ने अलग-अलग तर्क दिए व उन्हें भूतों का राजा कहा। उसी समय दधिची
वहां आ गए और शिव को वहां न देख सब से कारण पूछा। तो दक्ष ने कहा कि न तो मैंने बेटी को बुलाया है, न ही शिव को यह तो ब्रह्म जी के कहने पर मैंने अपनी बेटी उसको दे दी नहीं तो उस भूतों-प्रेतों के स्वामी को कौन पूछता है। ददिची वहां से यह सब सुन चले गए। लेकिन जो होना हो हो कर रहता है। इतने में वहां माता सती आ गई व अपने पति को न देख आग बबूला हो गई। उसका गुस्सा देख दक्ष ने उसे भी वहां से जाने को कह दिया व शिव को खरी-खोटी सुने सती वहां से गई नहीं और उत्तर दिशा की और मुख करके शिव का ध्यान करके अपना शरीर भस्म कर डाला। सब भयभीत हो गए शंकर जी की समाधी खुल गई शिव ने अपनी एक जटा धरती पर मार कर महाकाली व् वीरभद्र महाकाल उत्पन कर दक्ष का वध करने का हुक्म दिया। उन्होंने दक्ष का वध कर यज्ञ को नष्ट कर दिया व भोले शिव वहां से सती का जला हुआ शरीर लेकर चले तो तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। तब शिव का गुस्सा शांत करने का ज़िम्मा विष्णु को सोंपा गया। भगवान् विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के अंगों को काट-काट कर धरती को हा-हा कार से बचाया, सती के अंग जहाँ जहाँ गिरे वो 52 शक्तिपीठ बने। माता सती की जिव्हा गिरी थी ज्वालामुखी शहर में और यहाँ प्रकट हुई थी मां ज्वाला रूप में। यहाँ पर माँ की
9 ज्योतियाँ जलती हैं। वहीँ इस शक्तिपीठ को ज्वालामुखी धाम के नाम से भी जाना जाता है।
ध्यानु भगत ने चढ़ाया था माँ को शीश – माँ ज्वालामुखी ही है उत्तर प्रदेश के लोगों की कुलदेवी। यहाँ पर ही ध्यानु भक्त ने पीले वस्त्र धारण कर अपना सर काट कर माँ को अर्पित किया था। माँ ज्वालामुखी के मन्दिर में ही नंगे पाँव चल कर अकबर आया था। वहीं इसी मन्दिर में अकबर ने सोने का छात्र चडाया था। ज्वालामुखी धाम यूँ ही देश-विदेश में प्रसिद्ध नहीं है। कहते हैं की धयानु भक्त ने यहीं पर अपना सर काट कर मां को अर्पण किया था। क्योंकि धयानु भक्त उत्तरप्रदेश से संबंधित था। इसलिए मां ब्रजेश्वरी को उत्तरप्रदेश के लोग अपनी कुलदेवी मानते हैं। आज भी मुंडन संस्कार के लिए मां ज्वालामुखी का रुख करते है। कहते हैं यह वही मन्दिर है, जहा सच्चे मन से मांगी हर मुराद पूरी होती है। नवरात्रों में देश विदेश से लाखों श्रद्धालु माँ ज्वालाजी के चरणों में अपने परिवार सहित शीश नवाने के लिए आते हैं।
क्या कहते हैं पुजारी कपिल शर्मा – ज्वालामुखी मन्दिर के मुख्य पुजारी कपिल शर्मा कहते हैं कि इस मंदिर में मूर्ति पूजा नहीं होती है। यहां माँ के अखण्ड ज्योतियों के रूप में दर्शन होते हैं। नवरात्रों में हवन पूजा का विशेष महत्व है। इन शारदीय नवरात्रों में नवदुर्गा के 9 रूपों की पूजा होती है।
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